सलोनी का प्यार (उपन्यास)लेखनी कहानी -17-Jan-2022
भाग -4
राहुल ने सच्चे मन से ही प्रार्थना की होगी जो भगवान ने उसकी प्रार्थना सुन ली।
इक्यावन साल पुरानी घटना अपना पहला प्यार अपने बचपन को याद कर अपने आंगन के झूले में बैठी सफेद साड़ी पहनी और बालों में चांदी सी चमक लिए साठ साल की सलोनी की आंखें आंसुओं से भीगी थी , थोड़ी खुशी और थोड़ी उदासी उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी। कितनी बहादुरी से उसने राहुल को सुरक्षित उसके घर पहुंचाया था उसके मम्मी पापा के पास। वो याद नगरी में भटकती उन दृश्यों को याद कर रही है ...
जैसे ही कालिया आग में उस लोहे की छड़ को गर्म करने के लिए झुका उसने कुछ पटाखे आग में फैंक दिए , पटाखों की आवाज से अफरातफरी मच गई और सारे बच्चे वहां से भागने लगे ।
कालिया चीखता रहा चिल्लाता रहा, रुको रुको... सबकी टांगें तोड़ दूंगा।किसने की ये शरारत, आज उसकी खैर नहीं।
ना जाने कौन सी ताकत आ गई थी उस समय मुझमें जो मैं कालिया के सामने आकर बोली,मैंने किया है । राहुल का हाथ पकड़ उसे खींचते हुए जैसे ही दरवाजे तक पहुंची पुलिस आ गई थी और फिर सारा किस्सा शुरू से अंत तक मैंने उन पुलिस वालों को बताया। राहुल एक टक मेरी तरफ देख रहा था और मैं उससे आंखें चुरा रही थी। पुलिस ने सभी बच्चों को उनके घर तक पहुंचाया, उन भिखारिन को और कालिया को पुलिस अपने साथ थाने ले गई।
सवा रुपए का प्रसाद बजरंगबली को चढ़ा कर अंकल आंटी को दिया, सब मुझ झल्ली को उस दिन ढ़ेरों आशिर्वाद दे रहे थे। राहुल शर्म से गर्दन झुकाए एक कोने में खड़ा था। आंटी जी मेरी बलाईयां लेते ना थकती।
मेरी लाडो तूने कमाल कर दिया,मेरी मम्मी पापा बहुत खुश थे उस दिन। मेरी बहादुर बिटिया ... पापा तो कंधे पर बिठाकर गली में चल पड़े शान से। उन्हें मुझ पर गर्व महसूस हो रहा था। दीदी और भाई की जलन साफ नजर आ रही थी।जब भी पापा मम्मी मुझसे प्यार करते वो दोनों दुःखी हो जाते, उनके हिस्से का प्यार मुझे जो मिल जाता।
जिस शक्ल सूरत से सब नफरत किया करते उसमें एक प्यार और सबकी मदद करने वाला एक खूबसूरत मन था और हां बुद्धि और साहस भी तो खूब था। राहुल के साथ सैंकड़ों बच्चों को उस कालिया के चंगुल से बचाया।
क्या वो राहुल मेरा पहला प्यार था या सिर्फ बचपना था जो भी था उस दिन के बाद फिर कभी उसे देखा ही नहीं। पापा का तबादला हो गया दूसरे शहर में फिर वहां कभी लौटकर जाना ही ना हुआ। वैसे भी प्यार नहीं तब नफरत हो गई थी उससे, जो सिर्फ रंग रूप देखकर दोस्त बनाता हो वैसे लोगों से कभी अपने जीवन में दोस्ती ना करूंगी, मन में ठान लिया था।भले कोई मेरा दोस्त ना हो मंजूर था।
जिस दिन हम अपना समान ट्रक में लदवा कर गाड़ी में बैठे वो अपने गमले से एक पीला गुलाब का फूल तोड़कर मेरे लिए लाया था और सौरी कहकर कान पकड़ कर माफी मांग रहा था।
माफ तो मैं उसे कभी नहीं कर सकती थी क्योंकि उसने सिर्फ मुझे ही दुख नहीं पहुंचाया था वो तो अपने माता-पिता का गुनहगार था। स्कूल से सीधे घर ना आकर पार्क में बैठ गया और उस भिखारिन की बातों में आ कर उसके साथ चला गया।जो अपने मां बाप के बारे में नहीं सोच सकता वो दोस्त बनाने के काबिल ही नहीं है।
धीरे-धीरे मैं उसे भूलने लगी थी और अपने नए स्कूल और नई जगह पर रमने लगी। ऐसा नहीं था कि यहां सब मुझे पसंद करते, पर अब मैंने भी लोगों की बातों पर ध्यान देना बंद कर दिया। अपना अधिकतर समय पढ़ने लिखने में ही बिताने लगी। किताबों से अच्छा कोई दोस्त नहीं होता ये सच लगने लगा था। इस नई जगह में कुछ सहेलियां बनी जिन्होंने मुझे मैं जैसी हूं वैसे में ही स्वीकार किया,भले इसमें उनका ही कोई लाभ रहा हो। वो खेलने में और मौज मस्ती में समय बिताया करती और मैं अपना क्लास वर्क होमवर्क, प्रोजेक्ट सब समय पर तैयार करती। बस शायद यही लालच रहता रहा होगा उनका पर मैं क्यों आज इतने सालों बाद भी उन्हें याद करती हूं।
काश! याददाश्त कमजोर होती तो अच्छा होता .. खुद से बड़बड़ाते हुए झूले पर रखी स्टिक उठा सलोनी अपनी डायरी लिए चल दी, जिसमें उसकी पुरानी यादें वो झल्ली सी लड़की आज भी सजीव हो उठती है जब वो पुराने पन्नों को पढ़ती है।ऐसी एक नहीं सैंकड़ों डायरियां अब तक संभाल कर रखी है उसने, एक ही तो खजाना है आज भी उसके पास उसकी यादों का पिटारा।
उम्र के इस अंतिम पड़ाव पर जब सबने उसका साथ छोड़ दिया तो बस वो यादें ही शेष है अब उसके जीवन में जिसके सहारे अपनी बाकी की जिंदगी भी बिता देगी सलोनी। आज इस डायरी के पन्ने से उसे वो पीला गुलाब और राहुल का माफीनामा खत मिला, जिसे वो इस डायरी में रखकर भूल ही चुकी थी।
राहुल अकेला नहीं था उसके मन में दस्तक देने वाला,वो तो बच्चों के गुड्डा गुडिया के खेल की ही तरह आया और गया। जैसे एक खिलौना टूटने के बाद बच्चे नए खिलौने में रम जाते हैं बस उसी तरह तो कभी सलोनी को खिलौना बनाया किसी ने तो कभी उसे ही दूर से कोई खिलौना पसंद आया तो उसे पाने की चाहत में खुद को अपने रंग रूप को भूल बैठती।
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कविता झा काव्या कवि
# लेखनी
## लेखनी धारावाहिक लेखन प्रतियोगिता
११.०२.२०२२
kapil sharma
11-Feb-2022 11:47 AM
👍👍👍
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